मेरी सच कथा meri sach kathaa
[/b][/b]पोस्ट नं . 1
आज मैं अपने जीवन के कहानी की शुरआत करती हूँ अपने जन्म से. मैं १ अप्रैल १९८५ में पटना के पास एक गांव में पैदा हुई . मैं जात की पटेल हूँ जिसे कुर्मी कहते हैं . मेरे पिता जी खेती का काम करते हैं. मेरी माँ घर का काम करती है . मैं दो बहने और एक भाई हैं. मैं दूसरे नंबर पर हूँ . सबसे बड़ी मेरी बहन है और सबसे छोटा मेरा भाई. मेरी बहन मुझसे दो साल बड़ी है . मेरा पूरा परिवार गांव में ही रहता है. मेरे पिता जी काफी सीधे साधे इंसान है. घर में मेरी माँ का ही चलता है. यानि घर में वही होता है जो मेरी माँ कहती है . मेरी बड़ी बहन केवल हाईस्कूल तक की पढाई की और मैं बी ए तक पढ़ी हूँ. मेरी बहन की शादी मेरे गांव से तीस किलोमीटर की दुरी पर हुआ है . मेरे जीजा जी ट्रांसपोर्ट में काम करते हैं. मेरी शादी मेरे गांव से चालीस किलोमीटर की दुरी पर हुआ. लेकिन मैं शादी के कुछ दिन बाद से अपने पति से अलग रह रही हूँ . मैं इस समय दिल्ली में रहती हूँ .
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पोस्ट नं. - २ मेरे पिता जी
मेरे पिता जी सांवले रंग के छोटे कद के औसत शरीर के थे. अक्सर अपने काम में लगे रहने वाले थे. मेरे घर में मेरे पिता जी किसानी का काम करते हैं . खेत ज्यादे नहीं है .. इसलिए पैसे की हमेसा कमी रहती थी. अक्सर किसी से सूद पर पैसा लेना पड़ता था और फसल काटने के बाद देना पड़ता था. मुझे याद है जब मैं छोटी थी तबसे मेरे घर में पैसों की परेशानी बनी रहती थी. हम दोनों बहनो को पुरे साल में एक एक सलवार और समीज बन जाती थी. पिता जी को हम लोग बाबू जी या बाबू ही कहती हूँ . वो स्वभाव से काफी सीधे साधे हैं. मेरे पिता जी के कई लोग दोस्त भी थे. जो अक्सर परेशानी में काम आते थे. इसमें से कई लोग अपने ही गांव के थे. वो लोग अक्सर पिता जी से मिलने घर आते थे, खेत पर जाते थे. कभी कभी पैसों की परेशानी होती तो ये लोग मदद करते थे. हम दोनों बहने अक्सर इन लोगों को चाचा चाचा कहती थी. ये लोग जब भी घर आते तो पिता जी काफी खुश हो कर इनसे बातें करते और काफी देर तक गप्प शप्प होती थी. मेरे पिता जी सुर्ती या खैनी के अलावां कोई नशा नहीं करते हैं. पिता जी हम दोनों बहनो को नाम ले कर ही बुलाते थे. अक्सर नाम के पीछे रे लगा देते थे. कभी गुस्सा हो जाते तो भी मारते नहीं थे. मेरे पिता जी के कुछ दोस्त लोग पिता जी का मजाक उड़ाते थे क्योंकि पिता जी काफी सीधे साधे थे. मैं अक्सर देखती थी की कुछ दोस्त लोग पिता जी को चिड़ाते तो पिता जी हंस कर टाल देते थे. मेरे पिता जी कभी किसी को कुछ नहीं कहते थे बल्कि उन्ही को लोग कुछ कह देते थे. मेरे पिता जी के कई दोस्त मेरे पिता जी को चिढ़ाते तो हम दोनों बहनो को बुरा लगता और कई बार हम दोनों बहनो ने जब माँ से बोली तो माँ बोली की वो लोग दोस्त हैं ये सब चलता है .
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पोस्ट नं. - ३ मेरी माँ
मेरी माँ सांवले रंग की अच्छी कद काठी की स्वस्थ शरीर वाली औरत थी. साडी पहनने वाली अनपढ़ किस्म की थी लेकिन कहती थी की कच्छा पांच तक पढ़ी है . वैसे हिंदी के कुछ शब्द ही पढ़ पाती थी. लेकिन स्वाभाव से चालाक थी. शरीर ठोस सुडौल मांसल था. मेरे परिवार में मेरी माँ का ही चलता था. मेरे पिता जी को भी डांट देती थी. जब भी मेरे पिता जी को आँख दिखाती तो पिता जी अपनी नजरे दूसरी और फेर लेते थे. हम दोनों बहनो और छोटे भाई भी माँ से ही डरते थे. माँ को हम लोग गाँव वाले भाषा में माई कहती हूँ . माँ अपने घर और खेत का काम खूब करती थी. हम दोनों बहनो से भी खूब काम कराती थी. गांव से कुछ दुरी पर बाज़ार हॉट भी माँ ही करने जाती थी. हमारे खेत में की होने वाली फसल को भी माँ ही बेचती थी. पिता जी बस माँ का साथ देते थे. घर या खेती या किसी भी मामले में बाहरी लोगों से माँ ही बात करती थी. पिता जी बस चुपचाप सुनते थे और माँ जो कह देती वही होता था. मेरे पिता जी माँ को उसका नाम ले कर बुलाते थे. मेरे पिता जी के जो दोस्त लोग घर पे या खेत पे आते थे , उनमे से जो लोग पिता जी से उम्र में छोटे थे वे माँ को भौजी कह कर पुकारते थे. लेकिन जो लोग उम्र में पिता जी से बड़े थे वे लोग माँ को मेरी बड़ी बहन के नाम ले कर उसकी माँ कह कर पुकारते थे. या कुछ लोग माँ का नाम ले कर पुकारते थे. इन लोगों को देखते ही माँ अपने साडी के पल्लू को सर पे रख लेती थी. और उन लोगों की और अपनी पीठ कर लेती थी. घर की किसी समस्या हो या कर्ज लेने वाली बात हो , पिता जी के दोस्तों या रिस्तेदार से कर्ज लेना हो या कर्ज वापस करना हो ये सब मेरी माँ ही करती थी. मेरे पिता जी से कोई मतलब नहीं होता था और न ही वो कुछ बोलते थे. मैं छोटी थी तबसे इस बात को देखती थी की यदि पिता जी किसी से कर्ज मांगते तो कर्ज नहीं मिलता था. लेकिन मेरी माँ जब किसी से कर्ज या मदद मांगी तो लोगों ने माँ को कर्ज या मदद जरूर करते थे. गांव में किसी की शादी पड़ती और न्योता मिलता तो पिता जी जाते थे. लेकिन जब किसी रिस्तेदार के घर या किसी दूर के दोस्त या पहचान के यहां शादी का न्योता मिलता तो मेरी माँ ही जाती थी. वो भी शादी के एक दिन पहले और वापस आती शादी के बाद. मेरी माँ को घूमना फिरना बहुत पसंद था. घर आने वाले मेहमानो या पिता जी के दोस्तों का माँ काफी खातिर ख्याल रखती थी. मेरे घर में भी मेहमानो का आना जाना लगा रहता था. घर आने वाले मेहमान रिस्तेदार भी मेरी माँ से ज्यादे बात करते थे. पिता जी तो अक्सर खेत पर ही रहते और उनका मेहमानो और रिश्तेदारों में कोई रूचि नहीं दिखाई देती थी. लेकिन माँ मेहमानो की सेवा के साथ खूब बात करती थी. मेहमान और रिस्तेदार लोग मेरी माँ को ही अपने यहां बुलाते थे , लेकिन पिता जी को बहुत कम लोग बुलाते थे. यानि मेहमानो रिश्तेदारों में मेरी माँ की बहुत पूछ होती थी. मेरी माँ भी हर मौके पर उन लोगों के यहां जाती थी.
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पोस्ट नं. - 4 मेरा घर
मेरा घर गांव के किनारे पर था. वहां मेरी जाति के अलावा पंडित ठाकुर लोग भी रहते थे. पंडित लोग बहुत कम थे. मेरे गांव में ठाकुर लोग ज्यादे थे. मेरी जाति और ठाकुर जाति के लोग बराबर थे. मेरा घर जिस और था उधर केवल ठाकुर लोग का ही घर था. मेरा घर गांव के किनारे था. मेरे घर के बगल में एक ठाकुर का घर था जिसमे केवल उनके भैंस गाय बैल रहते थे और भूसा रखा जाता था. वो गांव में दूसरी और रहते थे. मेरे घर के पीछे एक बगीचा था जो उन्ही ठाकुर जी का था. मेरे घर के दूसरी और मेरी जाति के कुछ लोगों का घर था. और दूसरी और ठाकुरों का घर था. मेरे घर में तो कोई शराब नहीं पिता था. लेकिन बगल में ठाकुर लोग शराब के बहुत शौक़ीन थे. अक्सर शराब पीते थे. मेरे घर के उत्तर तरफ एक ठाकुर का पुराना घर था जिसमे उनका परिवार नहीं रहता था बल्कि उसमे उनके जानवर जैसे भैंस, गाय बैल रहते थे और उनका देखभाल करने के लिए उनके घर का कोई आदमी रहता था. मेरे घर में कुल दो कोठरी थी. एक कोठरी अंदर और एक कोठरी बाहर की थी. बाहर वाली कोठरी के बाहर छप्पर पड़ी थी. इस छप्पर में ही मेरे घर का खाना बनता था. छप्पर के बगल में हम लोग नहाने के लिए आड़ कर रखे थे. उसी में मेरे घर की औरतें जैसे मेरी माँ मेरी बहन और मैं नहाती थी. क्योंकि मेरे घर के ठीक बगल में ठाकुर जी का पुराना घर था वहाँ उनके घर का कोई न कोई मर्द रहता था. उनके घर से या उनक घर के छत से मेरे घर में साफ़ दिखाई देता था. गर्मी के दिनों में मेरी माँ मैं और मेरी दीदी छप्पर के बाहर ही खुले आसमान के निचे सोती थी. ऐसे में यदि ठाकुर लोग अपने घर के छत पर रहते तो हम sab को देख सकते थे. क्योकि उनके छत से मेरी घर में साफ़ दीखता था. उनका छत मेरी घर से सटा हुआ था. चांदनी रात में कभी कभी ठाकुर लोग अपने छत पर टहलते तो मेरी माँ हम दोनों बहनो को छप्पर में सोने के लिए भेज देती थी.
मेरे घर के बगल में ही एक हैण्डपम्प था जहाँ माँ अक्सर नहा लेती थी लेकिन हम दोनों बहने नहीं नहा पाती थी. क्योंकि वो हैण्डपम्प एक ठाकुर के दरवाजे के सामने था और वो काफी शराबी किस्म के थे. हम दोनों बहने वहाँ से बाल्टी में पानी ले आकर छप्पर के बगल में बने टाटी के बाथरूम में ही नहाती थी. लेकिन फिर भी यदि बगल वाले ठाकुर के पुराने घर के छत पर यदि कोई आ जाता तो हमें टाटी के अंदर भी नहाते देख सकता था. हम दोनों बहने नहाने से पहले ये देख लेती थीं की कोई ठाकुर के पुराने मकान के छत पे तो नहीं है.
इसके आगे के पोस्ट में मैं अपने और अपने परिवार के बातों को बताउंगी ...
आज मैं अपने जीवन के कहानी की शुरआत करती हूँ अपने जन्म से. मैं १ अप्रैल १९८५ में पटना के पास एक गांव में पैदा हुई . मैं जात की पटेल हूँ जिसे कुर्मी कहते हैं . मेरे पिता जी खेती का काम करते हैं. मेरी माँ घर का काम करती है . मैं दो बहने और एक भाई हैं. मैं दूसरे नंबर पर हूँ . सबसे बड़ी मेरी बहन है और सबसे छोटा मेरा भाई. मेरी बहन मुझसे दो साल बड़ी है . मेरा पूरा परिवार गांव में ही रहता है. मेरे पिता जी काफी सीधे साधे इंसान है. घर में मेरी माँ का ही चलता है. यानि घर में वही होता है जो मेरी माँ कहती है . मेरी बड़ी बहन केवल हाईस्कूल तक की पढाई की और मैं बी ए तक पढ़ी हूँ. मेरी बहन की शादी मेरे गांव से तीस किलोमीटर की दुरी पर हुआ है . मेरे जीजा जी ट्रांसपोर्ट में काम करते हैं. मेरी शादी मेरे गांव से चालीस किलोमीटर की दुरी पर हुआ. लेकिन मैं शादी के कुछ दिन बाद से अपने पति से अलग रह रही हूँ . मैं इस समय दिल्ली में रहती हूँ .
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पोस्ट नं. - २ मेरे पिता जी
मेरे पिता जी सांवले रंग के छोटे कद के औसत शरीर के थे. अक्सर अपने काम में लगे रहने वाले थे. मेरे घर में मेरे पिता जी किसानी का काम करते हैं . खेत ज्यादे नहीं है .. इसलिए पैसे की हमेसा कमी रहती थी. अक्सर किसी से सूद पर पैसा लेना पड़ता था और फसल काटने के बाद देना पड़ता था. मुझे याद है जब मैं छोटी थी तबसे मेरे घर में पैसों की परेशानी बनी रहती थी. हम दोनों बहनो को पुरे साल में एक एक सलवार और समीज बन जाती थी. पिता जी को हम लोग बाबू जी या बाबू ही कहती हूँ . वो स्वभाव से काफी सीधे साधे हैं. मेरे पिता जी के कई लोग दोस्त भी थे. जो अक्सर परेशानी में काम आते थे. इसमें से कई लोग अपने ही गांव के थे. वो लोग अक्सर पिता जी से मिलने घर आते थे, खेत पर जाते थे. कभी कभी पैसों की परेशानी होती तो ये लोग मदद करते थे. हम दोनों बहने अक्सर इन लोगों को चाचा चाचा कहती थी. ये लोग जब भी घर आते तो पिता जी काफी खुश हो कर इनसे बातें करते और काफी देर तक गप्प शप्प होती थी. मेरे पिता जी सुर्ती या खैनी के अलावां कोई नशा नहीं करते हैं. पिता जी हम दोनों बहनो को नाम ले कर ही बुलाते थे. अक्सर नाम के पीछे रे लगा देते थे. कभी गुस्सा हो जाते तो भी मारते नहीं थे. मेरे पिता जी के कुछ दोस्त लोग पिता जी का मजाक उड़ाते थे क्योंकि पिता जी काफी सीधे साधे थे. मैं अक्सर देखती थी की कुछ दोस्त लोग पिता जी को चिड़ाते तो पिता जी हंस कर टाल देते थे. मेरे पिता जी कभी किसी को कुछ नहीं कहते थे बल्कि उन्ही को लोग कुछ कह देते थे. मेरे पिता जी के कई दोस्त मेरे पिता जी को चिढ़ाते तो हम दोनों बहनो को बुरा लगता और कई बार हम दोनों बहनो ने जब माँ से बोली तो माँ बोली की वो लोग दोस्त हैं ये सब चलता है .
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पोस्ट नं. - ३ मेरी माँ
मेरी माँ सांवले रंग की अच्छी कद काठी की स्वस्थ शरीर वाली औरत थी. साडी पहनने वाली अनपढ़ किस्म की थी लेकिन कहती थी की कच्छा पांच तक पढ़ी है . वैसे हिंदी के कुछ शब्द ही पढ़ पाती थी. लेकिन स्वाभाव से चालाक थी. शरीर ठोस सुडौल मांसल था. मेरे परिवार में मेरी माँ का ही चलता था. मेरे पिता जी को भी डांट देती थी. जब भी मेरे पिता जी को आँख दिखाती तो पिता जी अपनी नजरे दूसरी और फेर लेते थे. हम दोनों बहनो और छोटे भाई भी माँ से ही डरते थे. माँ को हम लोग गाँव वाले भाषा में माई कहती हूँ . माँ अपने घर और खेत का काम खूब करती थी. हम दोनों बहनो से भी खूब काम कराती थी. गांव से कुछ दुरी पर बाज़ार हॉट भी माँ ही करने जाती थी. हमारे खेत में की होने वाली फसल को भी माँ ही बेचती थी. पिता जी बस माँ का साथ देते थे. घर या खेती या किसी भी मामले में बाहरी लोगों से माँ ही बात करती थी. पिता जी बस चुपचाप सुनते थे और माँ जो कह देती वही होता था. मेरे पिता जी माँ को उसका नाम ले कर बुलाते थे. मेरे पिता जी के जो दोस्त लोग घर पे या खेत पे आते थे , उनमे से जो लोग पिता जी से उम्र में छोटे थे वे माँ को भौजी कह कर पुकारते थे. लेकिन जो लोग उम्र में पिता जी से बड़े थे वे लोग माँ को मेरी बड़ी बहन के नाम ले कर उसकी माँ कह कर पुकारते थे. या कुछ लोग माँ का नाम ले कर पुकारते थे. इन लोगों को देखते ही माँ अपने साडी के पल्लू को सर पे रख लेती थी. और उन लोगों की और अपनी पीठ कर लेती थी. घर की किसी समस्या हो या कर्ज लेने वाली बात हो , पिता जी के दोस्तों या रिस्तेदार से कर्ज लेना हो या कर्ज वापस करना हो ये सब मेरी माँ ही करती थी. मेरे पिता जी से कोई मतलब नहीं होता था और न ही वो कुछ बोलते थे. मैं छोटी थी तबसे इस बात को देखती थी की यदि पिता जी किसी से कर्ज मांगते तो कर्ज नहीं मिलता था. लेकिन मेरी माँ जब किसी से कर्ज या मदद मांगी तो लोगों ने माँ को कर्ज या मदद जरूर करते थे. गांव में किसी की शादी पड़ती और न्योता मिलता तो पिता जी जाते थे. लेकिन जब किसी रिस्तेदार के घर या किसी दूर के दोस्त या पहचान के यहां शादी का न्योता मिलता तो मेरी माँ ही जाती थी. वो भी शादी के एक दिन पहले और वापस आती शादी के बाद. मेरी माँ को घूमना फिरना बहुत पसंद था. घर आने वाले मेहमानो या पिता जी के दोस्तों का माँ काफी खातिर ख्याल रखती थी. मेरे घर में भी मेहमानो का आना जाना लगा रहता था. घर आने वाले मेहमान रिस्तेदार भी मेरी माँ से ज्यादे बात करते थे. पिता जी तो अक्सर खेत पर ही रहते और उनका मेहमानो और रिश्तेदारों में कोई रूचि नहीं दिखाई देती थी. लेकिन माँ मेहमानो की सेवा के साथ खूब बात करती थी. मेहमान और रिस्तेदार लोग मेरी माँ को ही अपने यहां बुलाते थे , लेकिन पिता जी को बहुत कम लोग बुलाते थे. यानि मेहमानो रिश्तेदारों में मेरी माँ की बहुत पूछ होती थी. मेरी माँ भी हर मौके पर उन लोगों के यहां जाती थी.
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पोस्ट नं. - 4 मेरा घर
मेरा घर गांव के किनारे पर था. वहां मेरी जाति के अलावा पंडित ठाकुर लोग भी रहते थे. पंडित लोग बहुत कम थे. मेरे गांव में ठाकुर लोग ज्यादे थे. मेरी जाति और ठाकुर जाति के लोग बराबर थे. मेरा घर जिस और था उधर केवल ठाकुर लोग का ही घर था. मेरा घर गांव के किनारे था. मेरे घर के बगल में एक ठाकुर का घर था जिसमे केवल उनके भैंस गाय बैल रहते थे और भूसा रखा जाता था. वो गांव में दूसरी और रहते थे. मेरे घर के पीछे एक बगीचा था जो उन्ही ठाकुर जी का था. मेरे घर के दूसरी और मेरी जाति के कुछ लोगों का घर था. और दूसरी और ठाकुरों का घर था. मेरे घर में तो कोई शराब नहीं पिता था. लेकिन बगल में ठाकुर लोग शराब के बहुत शौक़ीन थे. अक्सर शराब पीते थे. मेरे घर के उत्तर तरफ एक ठाकुर का पुराना घर था जिसमे उनका परिवार नहीं रहता था बल्कि उसमे उनके जानवर जैसे भैंस, गाय बैल रहते थे और उनका देखभाल करने के लिए उनके घर का कोई आदमी रहता था. मेरे घर में कुल दो कोठरी थी. एक कोठरी अंदर और एक कोठरी बाहर की थी. बाहर वाली कोठरी के बाहर छप्पर पड़ी थी. इस छप्पर में ही मेरे घर का खाना बनता था. छप्पर के बगल में हम लोग नहाने के लिए आड़ कर रखे थे. उसी में मेरे घर की औरतें जैसे मेरी माँ मेरी बहन और मैं नहाती थी. क्योंकि मेरे घर के ठीक बगल में ठाकुर जी का पुराना घर था वहाँ उनके घर का कोई न कोई मर्द रहता था. उनके घर से या उनक घर के छत से मेरे घर में साफ़ दिखाई देता था. गर्मी के दिनों में मेरी माँ मैं और मेरी दीदी छप्पर के बाहर ही खुले आसमान के निचे सोती थी. ऐसे में यदि ठाकुर लोग अपने घर के छत पर रहते तो हम sab को देख सकते थे. क्योकि उनके छत से मेरी घर में साफ़ दीखता था. उनका छत मेरी घर से सटा हुआ था. चांदनी रात में कभी कभी ठाकुर लोग अपने छत पर टहलते तो मेरी माँ हम दोनों बहनो को छप्पर में सोने के लिए भेज देती थी.
मेरे घर के बगल में ही एक हैण्डपम्प था जहाँ माँ अक्सर नहा लेती थी लेकिन हम दोनों बहने नहीं नहा पाती थी. क्योंकि वो हैण्डपम्प एक ठाकुर के दरवाजे के सामने था और वो काफी शराबी किस्म के थे. हम दोनों बहने वहाँ से बाल्टी में पानी ले आकर छप्पर के बगल में बने टाटी के बाथरूम में ही नहाती थी. लेकिन फिर भी यदि बगल वाले ठाकुर के पुराने घर के छत पर यदि कोई आ जाता तो हमें टाटी के अंदर भी नहाते देख सकता था. हम दोनों बहने नहाने से पहले ये देख लेती थीं की कोई ठाकुर के पुराने मकान के छत पे तो नहीं है.
इसके आगे के पोस्ट में मैं अपने और अपने परिवार के बातों को बताउंगी ...
9 年 前